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Showing posts from March, 2019

धर्म किसे कहते हैं ?

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धर्म 1.धर्म किसे कहते हैं ? अच्छे कर्मों के आचरण को धर्म कहते हैं । जिन कर्मों के करने से उन्नति हो और सच्चा सुख मिले उन कर्मों के आचरण को धर्म कहते हैं । 2. धर्म का पालन करना क्यों आवश्यक है? धर्म का पालन करने से ही मनुष्य उन्नति कर सकता है और सच्चा सुख पा सकता है, अगले जन्मों में क्रमशः उन्नति करते हुए मुक्ति को प्राप्त करता है। इसलिए धर्म का पालन करना आवश्यक है। 3. धर्म का पालन नहीं करने से क्या हानि है ? धर्म का पालन नहीं करने से मनुष्य दिन पर दिन पतित होता जाता है, उसका जीवन दुखी हो जाता है और अगले जन्मों में पशु या कीड़े मकोडों का जन्म पाता है । धर्म का पालन नहीं करने से यही हानि है। 4. धर्म के क्या लक्षण हैं ? धर्म के दस लक्षण मनु महाराज ने बताए हैं -धृति,क्षमा,दम,अस्तेय,शौच, इन्द्रिय निग्रह ,धी,विद्या, सत्य और अक्रोध । 5. धृति किसे कह्ते हैं ? कष्ट आने पर नहीं घबड़ाना, धीरज रखना , शांत मन से अपने कार्य करते जाना धृति कहलाता है। 6. क्षमा किसे कहते हैं ? किसी से अनजाने में अपराध हो जाय तो बुरा न मानना, क्रोध न करना, उससे बदले की भावना न रखना क्षमा कहलाता है।

परम पवित्र भगवाध्वज ⛳💐🌹🙏

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  " जिस राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर वेदकाल से आज तक हम स्फूर्ति पाते रहे ,जिसमे सदियों के उत्थान पतन के रोमांचकारी क्षणो की गाथाएँ गुम्फित है, जिसमे त्यागी, तपस्वी, पराकर्मी, दिग्विजयी, ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सम्राट, सेनापति, कवी, साहित्यकार, सन्यासी और असंख्य, कर्मयोगी के चरित्रों का स्मरण अंकित है, जहाँ दार्शनिक उपलब्धियों के साथ जीवन होम करने के असंख्य उदाहरण हमारे स्मृति पटल पर नाच उठते है, यह परम पवित्र भगवाध्वज ही हमारी अखंड राष्ट्रिय परम्परा का प्रतिक बनकर हमारे सामने उपस्थित होता है."  Santoshkumar Bhagirathi Pandey at 10.00am

हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व

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                  हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व अनेक बार विभिन्न अवसरों पर मुझसे यह प्रश्न किया जाता रहा है  -  १. क्या मतलब है हिन्दू शब्द का ?    २. राष्ट्र क्या है और राष्ट्रीयता से हमारा क्या अभिप्राय है ?           हिन्दू शब्द राष्ट्र वाचक है  जाति या संप्रदाय वाचक नहीं ... एक मातृभूमि , समान इतिहास, समान परंपरा, समान संस्कृति, समान आदर्श, समान जीवन लक्ष्य ,समान सुख-दुःख, समान शत्रु -मित्र  भाव, समान आशा-आकांछा आदि भावों से ही राष्ट्रीयता प्रकट होती है . भारत की उन्नति और विजय से सभी राष्ट्रिय शक्तियों को प्रसन्नता तथा पराजय से दुःख स्वाभाविक है. जिसका व्यवहार इसके विपरीत हो वह अराष्ट्रीय श्रेणी में आता है . भारत के उत्थान पतन का इतिहास ही हिन्दुओं का इतिहास है ..         गेहूं के खेत में कुछ अन्य पौधे होने पर भी वह खेत गेहूं का ही कहा जायेगा और जो कम मात्रा में पौध है उसको अल्पसंख्या में है यह पौध ऐसा विचार कर उसको ही बहुतायत से नहीं रोपा जा सकता या यूँ भी कह सकते है कि उसको ऐसी सुविधाएं प्रदान नहीं की जा सकती जिससे कि वह गेहूँ कि पौध को नष्ट कर दे . ऐसा उस हाल में तो कदापि

The Philosophy of the Upanishads : The Wisdom of Hinduism through Meditation, Philosophy, Yoga & Spiritual Knowledge !

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                                      🕉 " The philosophy of the Upanishads.        The Dharma of the Upanishads.        The spirituality of the Upanishads.        The Yoga of the Upanishads." When we think of the Upanishads, immediately our minds enter into these particular subjects—Philosophy, Dharma, Spirituality, and Yoga. The philosophy of the Upanishads is the vastness of the mind. The dharma of the Upanishads is the oneness of the heart. The spirituality of the Upanishads is the immortality of the soul. The Yoga of the Upanishads is the total manifestation of God here on earth. The vastness of the mind needs God the infinite Consciousness. The oneness of the heart needs God the supreme and eternal Beloved. The immortality of the soul needs God the ever-transcending Beyond. The total manifestation of God needs Human’s constant inner hunger. God is Purity in the vastness of the mind. God is Beauty in the oneness of the heart. God is Life in the i