हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व
हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व
अनेक बार विभिन्न अवसरों पर मुझसे यह प्रश्न किया जाता रहा है -
१. क्या मतलब है हिन्दू शब्द का ?
२. राष्ट्र क्या है और राष्ट्रीयता से हमारा क्या अभिप्राय है ?
हिन्दू शब्द राष्ट्र वाचक है जाति या संप्रदाय वाचक नहीं ... एक मातृभूमि , समान इतिहास, समान परंपरा, समान संस्कृति, समान आदर्श, समान जीवन लक्ष्य ,समान सुख-दुःख, समान शत्रु -मित्र भाव, समान आशा-आकांछा आदि भावों से ही राष्ट्रीयता प्रकट होती है . भारत की उन्नति और विजय से सभी राष्ट्रिय शक्तियों को प्रसन्नता तथा पराजय से दुःख स्वाभाविक है. जिसका व्यवहार इसके विपरीत हो वह अराष्ट्रीय श्रेणी में आता है . भारत के उत्थान पतन का इतिहास ही हिन्दुओं का इतिहास है ..
गेहूं के खेत में कुछ अन्य पौधे होने पर भी वह खेत गेहूं का ही कहा जायेगा और जो कम मात्रा में पौध है उसको अल्पसंख्या में है यह पौध ऐसा विचार कर उसको ही बहुतायत से नहीं रोपा जा सकता या यूँ भी कह सकते है कि उसको ऐसी सुविधाएं प्रदान नहीं की जा सकती जिससे कि वह गेहूँ कि पौध को नष्ट कर दे . ऐसा उस हाल में तो कदापि संभव नहीं जब कि वो गेहूँ के लिए उसके खेत के भविष्य के लिए अभिशाप बनने जा रही हो ...
राष्ट्र तीन चीज़ों भूमि , भूमि पर रहने वाला एक जनसमुदाय जो उसे माता जैसा मानता है ,और उस जन समुदाय की संस्कृति से मिलकर बना है . जिस प्रकार मानव का शरीर में प्राणतत्व न होने पर मानव मर जाता है उसी प्रकार संस्कृति राष्ट्र की आत्मा है इसके बिना राष्ट्र मर जाता है . जिन्हें अपने पूर्वजों से अपनत्व है वो हिन्दू है जीव मात्र को जीवित रहने का अधिकार है ऐसा हिन्दू विचार है जो कमाएगा वही खायेगा ऐसा तो कम्युनिष्ट विचार धारा है , जो भी पैदा हुआ है वह खायेगा ऐसा हिन्दू विचारधारा है..
भारत के सुख में सुख , दुःख में दुःख सभी मतावलंबियों को होना ही चाहिए कर्तव्य को करना ही धर्म है, इस प्रकार हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है न की कोई संप्रदाय , तो इसका सांप्रदायिक होना तो असंभव ही है ..
'यूनान रोम मिश्र मिट गए जहाँ से ,
क्या बात है कि जीवित है हिन्दुस्थान हमारा '
अनेक बार विभिन्न अवसरों पर मुझसे यह प्रश्न किया जाता रहा है -
१. क्या मतलब है हिन्दू शब्द का ?
२. राष्ट्र क्या है और राष्ट्रीयता से हमारा क्या अभिप्राय है ?
हिन्दू शब्द राष्ट्र वाचक है जाति या संप्रदाय वाचक नहीं ... एक मातृभूमि , समान इतिहास, समान परंपरा, समान संस्कृति, समान आदर्श, समान जीवन लक्ष्य ,समान सुख-दुःख, समान शत्रु -मित्र भाव, समान आशा-आकांछा आदि भावों से ही राष्ट्रीयता प्रकट होती है . भारत की उन्नति और विजय से सभी राष्ट्रिय शक्तियों को प्रसन्नता तथा पराजय से दुःख स्वाभाविक है. जिसका व्यवहार इसके विपरीत हो वह अराष्ट्रीय श्रेणी में आता है . भारत के उत्थान पतन का इतिहास ही हिन्दुओं का इतिहास है ..
गेहूं के खेत में कुछ अन्य पौधे होने पर भी वह खेत गेहूं का ही कहा जायेगा और जो कम मात्रा में पौध है उसको अल्पसंख्या में है यह पौध ऐसा विचार कर उसको ही बहुतायत से नहीं रोपा जा सकता या यूँ भी कह सकते है कि उसको ऐसी सुविधाएं प्रदान नहीं की जा सकती जिससे कि वह गेहूँ कि पौध को नष्ट कर दे . ऐसा उस हाल में तो कदापि संभव नहीं जब कि वो गेहूँ के लिए उसके खेत के भविष्य के लिए अभिशाप बनने जा रही हो ...
राष्ट्र तीन चीज़ों भूमि , भूमि पर रहने वाला एक जनसमुदाय जो उसे माता जैसा मानता है ,और उस जन समुदाय की संस्कृति से मिलकर बना है . जिस प्रकार मानव का शरीर में प्राणतत्व न होने पर मानव मर जाता है उसी प्रकार संस्कृति राष्ट्र की आत्मा है इसके बिना राष्ट्र मर जाता है . जिन्हें अपने पूर्वजों से अपनत्व है वो हिन्दू है जीव मात्र को जीवित रहने का अधिकार है ऐसा हिन्दू विचार है जो कमाएगा वही खायेगा ऐसा तो कम्युनिष्ट विचार धारा है , जो भी पैदा हुआ है वह खायेगा ऐसा हिन्दू विचारधारा है..
भारत के सुख में सुख , दुःख में दुःख सभी मतावलंबियों को होना ही चाहिए कर्तव्य को करना ही धर्म है, इस प्रकार हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है न की कोई संप्रदाय , तो इसका सांप्रदायिक होना तो असंभव ही है ..
'यूनान रोम मिश्र मिट गए जहाँ से ,
क्या बात है कि जीवित है हिन्दुस्थान हमारा '
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