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Showing posts from June, 2019

अहं ब्रह्मास्मि 💞🌹🕉💐⛳🌹🙏

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अहं ब्रह्मास्मि 💞🌹🕉💐⛳🌹🙏 साधारणतया 'अहं ब्रह्मास्मि' का अर्थ लोग 'मैं ही ब्रह्म हूँ', ऐसा लेते हैं परन्तु इसका यह यथार्थ अर्थ नहीं है। क्योंकि ये जीव ब्रह्म नहीं है। ब्रह्म होने से तो सभी प्राणी सर्व-शक्तिमान व अन्तर्यामी आदि अनन्त गुणों से विभूषित होते। जबकि वास्तविकता में संसार का कोई भी प्राणी ब्रह्म की तरह अनन्त गुण सम्पन्न नहीं है।  शिवोऽहम् का अर्थ भी --'मैं शिव हूँ', ऐसा नहीं है। क्योंकि हरेक प्राणी पार्वती जी का पति नहीं हो सकता। पार्वतीजी तो हम सब जीवों की माता है।  हमारे वैष्णवाचार्योंं ने  'अहं ब्रह्मास्मि' का अर्थ इस प्रकार से किया है - मैं ब्रह्म का हूँ। 'शिव' का अर्थ 'मंगलमय' होता है। अतः 'शिवोऽहम' का अर्थ होता है --- मैं मंगलमय भगवान का हूँ। श्रीमद् भागवत् महापुराण के अनुसार ब्रह्म व परमात्मा तो 'भगवान' शब्द के पर्यायवाची शब्द हैं।  (भा…1/2/11) गीताजी के पन्द्रहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्णजी ने जीव को अपना अंश कहा है। अर्थात् जीव भगवान न होकर भगवान श्रीकृष्ण का अंश है। गीताजी के ही सातवें अध्या...

Kindness is a great act of wisdom 🌹💐💞 🙏

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" Kindness is a great act of wisdom "    Kindness is a simple act that can take us either individually or business wise to great heights. It is the deed of giving that brings so much in return in terms of growth, happiness, and love. Think of the time when someone was good or kind to you for no reason or may be a time when someone helped you out of a trouble. Aren’t you thankful to him or her to this day? That’s how kindness can touch you. It affects the receiver and the giver in a myriad of beautiful ways. We live in a world of takers, givers, and matchers. Takers are perceived as self-centred because they think more about themselves than anyone else. Givers, on the other hand, are selfless. They think about others and believe that kindness begets kindness. They hardly expect anything in return, which makes them more likeable. Matchers are in between. They are often heard saying, “You be nice to me and I will be nice to you.” Studies and practical experienc...

ब्राह्मण का इतिहास एवं परिचय !

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ब्राह्मण का इतिहास एवं परिचय "श्री" एक एव पुर वेद: प्रणव: सर्ववाङमय देवो नारायणो नान्योरहयेकोsग्निवर्ण एव च। न विशेषोsस्ति वर्णानां सर्व ब्रह्ममयं जगत। प्रथम: ब्राह्मण: कर्मणा वर्णतां गत:।। पहले वेद एक था। ओंकार में संपूर्ण वांगमय समाहित था। एक देव नारायण था। एक अग्नि और एक वर्ण था। वर्णों में कोई वैशिष्ट्यर नहीं था सब कुछ ब्रह्मामय था। सर्वप्रथम ब्राह्मण बनाया गया और फिर कर्मानुसार दूसरे वर्ण बनते गए. सभी व्यूक्ति विराट पुरुष की संतान हैं और सभी थोड़ा बहुत ज्ञान भी रखते हैं तो भी वो अपने आप को ब्राह्मण नहीं कहते। एक निरक्षर भट्टाचार्य मात्र ब्राह्मण के घर जन्म लेने से अपने आपको ब्राह्मण कहता है। और न केवल वही कहता है अपितु भिन्नन-भिन्नर समाजों के व्यहक्ति भी उसे पण्डितजी कहकर पुकारते हैं। लोकाचार सब न्या यों में व सब प्रमाणों में बलवान माना जाता है "सर्व ब्रह्मामयं जगत" अनुसार सब कुछ ब्रह्म है और ब्रह्म की संतान सभी ब्राह्मण हैं। डॉ. रामेश्वार दत्त शर्मा द्वारा लिखित पुस्तटक 'ब्राह्मण समाज परिचय एवं योगदान' के मुखपृष्ठ पर अंकित ब्रह्मरूपी वृक्ष मे...

PHILOSOPHY OF SANATAN DHARMA ( HINDU DHARMA) - THE SUPREME PATH TOWARDS ENLIGHTENMENT !

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  SANATAN DHARMA ( HINDU DHARMA) - THE SUPREME PATH TOWARDS ENLIGHTENMENT THE PHILOSOPHICAL ROOTS OF YOGA       Yoga and meditation are terms that the vast majority of us are familiar with.  What most people are not quite as familiar with, however, are the ancient, rich and profoundly spiritual dimensions of these terms.  Yoga and meditation are infinitely more that just a series of calming and effective physical and mental exercises.  Rather, Yoga and meditation are an ancient and rich spiritual tradition, philosophy and lifestyle designed to help human beings realize the highest degree of excellence in all they do, and ultimately to know themselves and God. Sanatana Dharma is another, lesser known, name for the path of Yoga Spirituality.  In fact, it can be truthfully said that the practical techniques of Yoga are nothing less than the philosophy of Sanatana Dharma in practice. Sanatana Hindu Dharma is the world's most ancien...