हिंदू धर्म और हिंदी में तलाक का विकल्प नहीं !
हिंदू धर्म और हिंदी में तलाक का विकल्प नहीं
हिन्दू धर्म में शादी के बाद पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद उनके अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है। हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना जाता है और पति-पत्नी को विष्णु और लक्ष्मी का रूप। हिंदी में तलाक का कोई विकल्प ही नहीं है। तलाक व डाइवोर्स शब्द हमारे नहीं हैं।
मैं जनसत्ता में नौकरी करता था। एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़े के बाद पत्नी की हत्या कर दी। मैंने हेडिंग लगाई ‘पति ने अपनी बीवी को मार डाला।’ खबर छप गई। किसी को आपत्ति नहीं थी। शाम को घर जाते समय प्रधान संपादक प्रभाष जोशी सीढ़ियों के पास मिल गए। उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती। बीवी तो शौहर की होती है, मियां की होती है। पति की तो पत्नी होती है। हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न। बीवी कहें या पत्नी या वाइफ, सब एक ही है। पर मेरे बोलने से पहले ही उन्होंने कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह। कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है। तब से मन में यह बात बैठ गई कि शब्द बहुत सोच-समझ कर गढ़े गए होते हैं।
खैर, आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं। निधि मेरी दोस्त है। उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था। फोन पर उसकी आवाज से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। मैं शाम को उसके घर पहुंचा। पहले तो इधर-उधर की बातें हुर्इं, फिर कहने लगी कि नितिन से उसकी नहीं बन रही। बात-बात पर झगड़ा होता है जो अब बहुत बढ़ गया है। इसलिए उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है। मैं चुपचाप बैठा रहा। निधि जब काफी देर बोल चुकी तो उससे नितिन को फोन कर बुलाने को कहा। उसने कहा कि बातचीत नहीं होती, फिर फोन कैसे करें? मैंने ही फोन कर उसे बुलाया। पहले तो वह आनाकानी करता रहा, पर जल्दी ही मान गया और घर आया। दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ झलक रही थी। लग रहा था दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले पति-पत्नी आंखों ही आंखों में एक-दूसरे की जान ले लेंगे। दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी। मैंने कहा-सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो। उसने कहा-सही सुना है। अब हम साथ नहीं रह सकते। मैंने कहा-तुम चाहो तो अलग रह सकते हो, पर तलाक नहीं ले सकते। तुमने मैरिज की होती तो डाइवोर्स ले सकते थे। निकाह किया होता तो तलाक ले सकते थे। चूंकि तुमने शादी की है और हिन्दू धर्म में पति-पत्नी के अलग होने का प्रावधान है ही नहीं। मैंने बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हंस पड़े। मैं समझ गया कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ पिघलने लगी है। निधि से पूछा- ये तुम्हारे कौन हैं? उसने नजरें झुकाकर कहा- पति। नितिन से पूछा- ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नजरें घुमाते हुए कहा- बीवी। मैंने टोका- ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं, क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं। तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने निकाह नहीं किया, शादी की है तो ये तुम्हारी पत्नी हुर्इं। हमारे यहां जोड़ी ऊपर से बनकर आती है। तुम भले सोचो कि शादी तुमने की है, पर यह सत्य नहीं है। शादी का एलबम लाओ, मैं साबित कर दूंगा।
एक-दो बार कहने पर निधि एलबम ले लाई। कई तस्वीरें देखने के बाद एक तस्वीर निकाल कर दोनों को देखने को कहा। तस्वीर देखकर दोनों साथ पूछ बैठे, इसमें खास क्या है? मैंने कहा कि यह पांव पूजन की रस्म है। तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं। ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती जहां छोटों के पांव बड़े छूते हों। हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है। माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी, विष्णु व लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं। तुम दोनों सोचो कि क्या हजारों-लाखों साल से विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं? तलाक और डाइवोर्स शब्द हमारे नहीं हैं। मैंने पूछा- हिंदी में तलाक को क्या कहते हैं? दोनों मेरी ओर देखने लगे। उनके पास कोई जवाब नहीं था।
दरअसल, हिन्दी में तलाक का विकल्प ही नहीं है। निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी। फिर वह कॉफी लाने चली गई तो मैं नितिन से बात करने लगा। पता चला कि छोटी-छोटी बातें हैं, छोटी-छोटी इच्छाएं हैं, जिनकी वजह से झगड़े हो रहे हैं। खैर, कॉफी आई। मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोका, ‘‘भैया इन्हें शुगर है। चीनी नहीं लेंगे।’’ घंटा भर पहले इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं। मैं हंस पड़ा। मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंप गई।
Santoshkumar B Pandey at 12.05Am.
हिन्दू धर्म में शादी के बाद पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद उनके अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है। हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना जाता है और पति-पत्नी को विष्णु और लक्ष्मी का रूप। हिंदी में तलाक का कोई विकल्प ही नहीं है। तलाक व डाइवोर्स शब्द हमारे नहीं हैं।
मैं जनसत्ता में नौकरी करता था। एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़े के बाद पत्नी की हत्या कर दी। मैंने हेडिंग लगाई ‘पति ने अपनी बीवी को मार डाला।’ खबर छप गई। किसी को आपत्ति नहीं थी। शाम को घर जाते समय प्रधान संपादक प्रभाष जोशी सीढ़ियों के पास मिल गए। उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती। बीवी तो शौहर की होती है, मियां की होती है। पति की तो पत्नी होती है। हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न। बीवी कहें या पत्नी या वाइफ, सब एक ही है। पर मेरे बोलने से पहले ही उन्होंने कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह। कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है। तब से मन में यह बात बैठ गई कि शब्द बहुत सोच-समझ कर गढ़े गए होते हैं।
खैर, आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं। निधि मेरी दोस्त है। उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था। फोन पर उसकी आवाज से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। मैं शाम को उसके घर पहुंचा। पहले तो इधर-उधर की बातें हुर्इं, फिर कहने लगी कि नितिन से उसकी नहीं बन रही। बात-बात पर झगड़ा होता है जो अब बहुत बढ़ गया है। इसलिए उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है। मैं चुपचाप बैठा रहा। निधि जब काफी देर बोल चुकी तो उससे नितिन को फोन कर बुलाने को कहा। उसने कहा कि बातचीत नहीं होती, फिर फोन कैसे करें? मैंने ही फोन कर उसे बुलाया। पहले तो वह आनाकानी करता रहा, पर जल्दी ही मान गया और घर आया। दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ झलक रही थी। लग रहा था दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले पति-पत्नी आंखों ही आंखों में एक-दूसरे की जान ले लेंगे। दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी। मैंने कहा-सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो। उसने कहा-सही सुना है। अब हम साथ नहीं रह सकते। मैंने कहा-तुम चाहो तो अलग रह सकते हो, पर तलाक नहीं ले सकते। तुमने मैरिज की होती तो डाइवोर्स ले सकते थे। निकाह किया होता तो तलाक ले सकते थे। चूंकि तुमने शादी की है और हिन्दू धर्म में पति-पत्नी के अलग होने का प्रावधान है ही नहीं। मैंने बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हंस पड़े। मैं समझ गया कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ पिघलने लगी है। निधि से पूछा- ये तुम्हारे कौन हैं? उसने नजरें झुकाकर कहा- पति। नितिन से पूछा- ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नजरें घुमाते हुए कहा- बीवी। मैंने टोका- ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं, क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं। तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने निकाह नहीं किया, शादी की है तो ये तुम्हारी पत्नी हुर्इं। हमारे यहां जोड़ी ऊपर से बनकर आती है। तुम भले सोचो कि शादी तुमने की है, पर यह सत्य नहीं है। शादी का एलबम लाओ, मैं साबित कर दूंगा।
एक-दो बार कहने पर निधि एलबम ले लाई। कई तस्वीरें देखने के बाद एक तस्वीर निकाल कर दोनों को देखने को कहा। तस्वीर देखकर दोनों साथ पूछ बैठे, इसमें खास क्या है? मैंने कहा कि यह पांव पूजन की रस्म है। तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं। ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती जहां छोटों के पांव बड़े छूते हों। हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है। माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी, विष्णु व लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं। तुम दोनों सोचो कि क्या हजारों-लाखों साल से विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं? तलाक और डाइवोर्स शब्द हमारे नहीं हैं। मैंने पूछा- हिंदी में तलाक को क्या कहते हैं? दोनों मेरी ओर देखने लगे। उनके पास कोई जवाब नहीं था।
दरअसल, हिन्दी में तलाक का विकल्प ही नहीं है। निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी। फिर वह कॉफी लाने चली गई तो मैं नितिन से बात करने लगा। पता चला कि छोटी-छोटी बातें हैं, छोटी-छोटी इच्छाएं हैं, जिनकी वजह से झगड़े हो रहे हैं। खैर, कॉफी आई। मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोका, ‘‘भैया इन्हें शुगर है। चीनी नहीं लेंगे।’’ घंटा भर पहले इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं। मैं हंस पड़ा। मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंप गई।
Santoshkumar B Pandey at 12.05Am.
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