हिन्दू नववर्ष का ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व है !

हिन्दू नववर्ष का ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व है 

               ॥ श्री गणेशाय नमः ॥
 विक्रम संवत 2081 कब है (Hindu Nav Varsh ) पंचांग के अनुसार नवसंवत्सर यानि हिंदू नववर्ष ( अंग्रेज़ी ग्रेगोरियन कैलेंडर 9 अप्रैल 2024 ) से आरंभ हो रहा है. इसे विक्रम नवसंवत्सर भी कहा जाता है. इस दिन चैत्र  मास की शुक्ल प्रतिपदा तिथि शुरू होगा आओ हम इस अवसर पर अपनी गौरवशाली संस्कृति और धर्म की रक्षा का संकल्प लें !

       

सूर्य की प्रथम किरण के साथ अपने अपने घरों में और मंदिरों में नव वर्ष का स्वागत करें, मेरी और मेरे परिवार की ओर से आप सभी को नूतन वर्ष के आगमन की ढेरों बधाईयाँ।

आज से 2063 वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांताओं से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ हुई थी।

उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा, महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2061 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। 
साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई, उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला।

महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की, सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया, इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया, यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। 

इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ, महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया, आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है।

यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है, हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।

व्रज के नूतन वर्ष का प्रारंभ भी आज से ही होता है, ब्रह्मा जी ने आज ही के दिन सृष्टि की रचना की, भारत में प्रचलित सभी संवतों का प्रथम दिन।

आज ही के दिन प्रभु श्रीराम जी ने दक्षिण में पहली बार 'बाली' के अत्याचार से प्रजा को मुक्ति दिलाई, इसी दिन सभी ने अपने घर पर भगवाध्वज लहराया।युगाब्द ( युधिष्ठर संवत्) का आरम्भ।

शालिवाहन शक संवत् ( भारत का राष्ट्रीय संवत्) का प्रथम दिन, सिंध प्रांत के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल का जन्म दिन भी वर्ष प्रतिपदा ही है, महर्षि गौतम का जन्म भी आज ही के दिन हुआ।

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को 
गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है, शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग)महर्षि दयानन्द जी द्वारा आर्य समाज का स्‍थापना दिवस..

नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती है, चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं।

शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है, ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है, महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग' की रचना की थी । 

वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है,भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है।

आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है, इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। 

विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है, हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं, हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है।

आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं, यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है।  

प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है, मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। 

महाराज विक्रमादित्य ने आज से राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की, साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। 

उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी, सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया।

आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है, यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है, हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं।



मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य , शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कालेज आदि सभी  मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भगवा ध्वजा फेराकर सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें। 

अब से सभी भारतीय संकल्प ले क़ि अंग्रेजो द्वारा चलाया गया एक जनवरी को नववर्ष न मनाकर अपना महान हिन्दू धर्म वाला नववर्ष मनायेंगें, सभी हिन्दुओं को हिन्दू नववर्ष की एवं नवरात्रि प्रारंभ की बहुत बहुत शुभकामनाएँ, यह नववर्ष आप सब के लिए खुशी, समृद्धि, स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीयता लेकर आए

आज से ही नवदुर्गाओं के नवरात्रि का शुभारंभ होता है, देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं, दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं, ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा, नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है, इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं, यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है, अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब इनका नाम 'सती' था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था।

एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया, इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ में सम्मलित होने का निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा, अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई, सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं।अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है, उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है, कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा। शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ, पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी,उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है, सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं, केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे, परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा, उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे,यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा, उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं, उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।

सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं, पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। 
उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था, शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ, पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं, नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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वर्ष प्रतिपदा उत्सव !
( हिन्दू नववर्ष /  नव संवत्सर ) 
       संवत्सर शब्द सम् व वत्सर शब्दों से मिलकर बना है। सम् का अर्थ है ब्रह्म व वत्सर ब्रह्मा की कला जिससे काल (समय) बना है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारत में प्रचलित सभी संवतों का प्रारम्भ दिन। अर्थात् भारत नववर्षाभिनन्दन दिवस। हमारी सांस्कृतिक महिमा और राष्ट्रीय गौरव का जागृत रूप अर्थात् नव स्फूर्ति और उल्लास का दिन।
बसन्त में नव संवत्सर का आगमन होता है। यह नव पल्लव प्रस्फुटन की बेला है। प्रफुल्लता व प्रेरणा की ऋतु है। जनवरी ईसाई नववर्ष है। 

हमारे लिए इसका क्या महत्व हैं ?
   कल्प से लेकर संवत्, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र आदि के सामूहिक उच्चारण का नाम संकल्प है। पर वस्तुतः यह काल गणना कोई जड़ पैमाना नहीं है। व्यावहारिक और पारमार्थिक सत्ता की योजक कड़ी है। भारतीय पंचांग से इसे समझा जा सकता है इस दिन से बहुत से प्रेरक प्रसंग जुड़े हुए हैं जो प्रत्येक हिन्दू को आज भी स्फूर्ति प्रदान करते हैं।

आज के दिन भगवान राम का राज्यारोहण हुआ था। उन्होंने लोक को शोक संताप देने वाले रावण का विनाष कर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से मुक्त कर आदर्ष राम-राज्य की स्थापना की। आज भी इसे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

शक्तिरूपा माँ दुर्गा की उपासना, नवदुर्गा के नाम से इसी दिन से प्रारम्भ की जाती है। माँ दुर्गा की उपासना हमारी संस्कृति में मातृशक्ति के महत्व को दर्शाता है। दुर्गा माँ समाज के रक्षण-पोषण और संस्कार की प्रतीक है। यह मातृशक्ति है जो देवताओं की संगठित शक्ति के पुँज की प्रतीक है।

यूनान आक्रमण के विपरीत शकों का आक्रमण हमारे देश के काफी भीतरी भागों तक हुआ था। 12 वर्षों तक समाज को संगठित कर विक्रमादित्य ने शकों का समूल नाश कर भगवा फहराया था। समाज ने उन्हें शकारि विक्रमादित्य की उपाधि से विभूषित किया था। हिन्दू जीवन दर्षन की पुनः स्थापना हुई, शकों को पचा लेने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई और विक्रम संवत् की स्थापना हुई।

मुस्लिम अत्याचार से मुक्त कराने के लिए आज ही के दिन वरूणावतार सन्त झूलेलाल का जन्म वि.सं. 1064 को नासरपुर में हुआ। आततायी बादषाह मीरशाह को समाप्त करने के लिए जल सेना का निर्माण किया। नर मछली (वल्लों) के समान तीव्रगामी नौका युक्त जल सेना का निर्माण करने वाले सन्त झूलेलाल को दरियाशाह भी कहते हैं।

पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध में अपने पवित्र वेदों के संदेश और विज्ञान का विस्मरण करने वाले भारतीयों (हिन्दुओं) आर्यों को उनके गौरवशाली अध्यात्म और वेदों के ज्ञान-विज्ञान का परिचय कराने के लिए, ‘कृण्वन्तो विष्वमार्यम्’ का उद्घोष तथा मतान्तरितों के शुद्धि आन्दोलन हेतु महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आज ही के दिन आर्य समाज की स्थापना की थी।

वर्ष प्रतिपदा सिख गुरू अंगद देव का जन्म दिन भी है। जिन्होंने गुरूनानक देव जी की शिक्षाओं का राष्ट्ररक्षा के अनुरूप प्रसार किया तथा समाज के दलित एवं पिछड़े लोगों को गले लगाकर समरसता का संदेश दिया। आधुनिक मनु के रूप में भारतीय संविधान का निर्माण करने वाले बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म वि.सं. 1948 को वर्ष प्रतिपदा के ही दिन 14.04.1891 को हुआ।

राष्ट्र चिन्तक, संगठन मंत्र दृष्टा और प्रवर्तक परम पूज्यनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा के पावन दिन ही 1889 को नागपुर में हुआ।

डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे। विक्टोरिया के राज्यारोहण की मिठाई कूडे़दान में फेंकी। एडवर्ड सप्तम् के राज्याभिषेक समारोह का बहिष्कार, सीताबार्डी किले से यूनियनजैक उतारने के लिए घर में सुरंग खोदनी चाही, वन्देमातरम् उद्घोषणा पर प्रतिबन्ध के विरोध में नील सिटी हाई स्कूल में अंग्रेज निरीक्षक के सामने ही वन्देमातरम् का उद्घोष कर विरोध प्रकट किया। ये सब घटनाएं ज्वलंत देशभक्ति को प्रकट करती है।

डॉक्टर जी ने देश के इतिहास का अध्ययन किया और समाज की मूल कमजोरी संगठन का अभाव, ऐसा पाया। सम्पूर्ण देश में हिन्दू यह नाम गौरव का प्रतीक बने, हिन्दू ही इस देश का पुत्र है। ऐसा दृढ़ विचार किया।

हिन्दू को संगठित करने और एक राष्ट्रीय भाव सदैव इस भूमिपुत्र के मन में रहे इस जागरण हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का निर्माण किया।

वर्ष प्रतिपदा पर शाखा में होने वाले उत्सव में आद्यसरसंघचालक प्रणाम (आद्यसरसंघचालक=परम पूज्यनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी)

वर्ष प्रतिपदा उत्सव पर संघ की शाखा में शाखा लगाने से पूर्व आद्यसरसंघचालक प्रणाम होता है। आद्यसरसंघचालक प.पू. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी को प्रणाम किया जाता है। इस प्रणाम में संघ के घोष में बजने वाले वाद्यों आनक, शंख, पणव के साथ आद्यसरसंघचालक रचना जो की झपताल-240 में होती हैं का वादन किया जाता हैं। 

वर्ष प्रतिपदा पर शाखा में होने वाले उत्सव में करवाने हेतु अवतरण:-
प्रतिज्ञा कर लीजिए कि जब तक तन में प्राण है, संघ को नहीं भूलेंगे। अपने जीवन में ऐसा कहने का कुअवसर न आने दीजिए कि पाँच साल पहले मैं संघ का स्वयंसेवक था। हम लोग जब तक जीवित हैं, संघ के स्वयंसेवक रहेंगे। तन-मन-धन से संघ का कार्य करने के लिए अपने दृढ़ निष्चय को अखण्डित रूप से जागृत रखिये। -प.पू.डॉ. हेडगेवार जी

वर्ष प्रतिपदा पर शाखा में होने वाले उत्सव में करवाने हेतु काव्य गीत:-
काव्य गीत-1

पूर्ण करेंगे हम सब केशव, वह साधना तुम्हारी।

आत्म हवन से राष्ट्रदेव की, आराधना तुम्हारी।।

निशिदिन तेरी ध्येय चिन्तना, आकुल मन की तीव्र वेदना,

साक्षात्कार ध्येय का हो, यह मन कामना तुम्हारी।।1।।

पूर्ण करेंगे…..

कोटि-कोटि हम तेरे अनुचर, ध्येय मार्ग पर हुए अग्रसर,

होगी पूर्ण सशक्त राष्ट्र की, वह कल्पना तुम्हारी।।2।।

पूर्ण करेंगे…..

तुझ सी ज्योति हृदय में पावें, कोटि-कोटि तुम से हो जावें,

तभी पूर्ण हो राष्ट्र देव की, वह अर्चना तुम्हारी।।3।।

पूर्ण करेंगे…..

काव्य गीत-2

संघ-मंत्र के हे! उद्गाता ! अमिट हमारा तुमसे नाता।

कोटि-कोटि नर नित्य मर रहे, जब जग के नश्वर वैभव पर,

तब तुमने हमको सिखलाया, मर कर अमर बने कैसे नर,

जिसे जन्म दे बनी सपूती, शस्य श्यामला भारत माता।।

अमिट हमारा तुमसे नाता….

क्षण-क्षण, तिल-तिल, हँस-हँस जलकर, तुमने पैदा की जो

ज्वाला, ग्राम-ग्राम में प्रान्त-प्रान्त में, दमक उठी दीपों की माला,

हम किरणें हैं उसी तेज की, जो उस चिर जीवन से आता।।

अमिट हमारा तुमसे नाता….

श्वांस -श्वांस से स्वार्थ-त्याग की, तुमने पैदा की जो आंधी,

वह न हिमालय से रूक सकती, सागर से न जायेगी बाँधी,

हम झोंके उस प्रबल पवन के, प्रलय स्वयं जिससे थर्राता।।

अमिट हमारा तुमसे नाता….

कार्य चिरन्तन तब अपना हम, ध्येय मार्ग पर बढ़ते जाते,?

पूर्ण करेंगे दिव्य साधना, संघ-मंत्र मन में दोहराते,

अखिल जगत में फहरायेंगे, हिन्दू-राष्ट्र की विमल पताका।।

अमिट हमारा तुमसे नाता….

काव्य गीत-3

हमें वीर केशव मिले आप जब से,

नई साधना की डगर मिल गई है।।

भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हम,

न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है?

न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में,

हमारे लिए श्रेष्ठतम कर्म क्या है?

दिया ज्ञान जबसे मगर आपने है,

निरंतर प्रगति की डगर मिल गई है।।1।।

नई साधना की …….

समाया हुआ घोर तम सर्वदिक था,

सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था।

सभी सुप्त थे घोर तम में अकेले,

हृदय आपका हे तपी जूझता था।

जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग,

हमें प्रेरणा की डगर मिल गई है।।2।।

नई साधना की …….

बहुत थे दुःखी हिन्दू निज देश में ही,

युगों से सदा घोर अपमान पाया।

द्रवित हो गये आप यह दृष्य देख,

नहीं एक पल को कभी चैन पाया।

हृदय की व्यथा संघ बनकर फूट निकली,

हमें संगठन की डगर मिल गई है ।।3।।

नई साधना की …….

करेंगे पुनः हम सुखी मातृ भू को,

यही आपने शब्द मुख से कहे थे।

पुनः हिन्दू का हो सुयष गान जग में,

संजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे।

जला दीप ज्योतित किया मातृ मन्दिर,

हमें अर्चना की डगर मिल गई है।।4।।

नई साधना की …….

अन्य संघ गीत हेतु यहाँ देखें।


हिन्दू नववर्ष को भारत में किन-किन नामों से जाना जाता है : 
      भारत में विभिन्न भाषा एवं धर्म को मानने लोग रहते हैं जिसके कारण यहाँ अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से नववर्ष को मनाया जाता हैl हिन्दू नववर्ष की शुरूआत चैत्र महीने से होती हैl हिन्दू कैलेंडर को विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है और इसका नाम उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है जिन्होंने शकों पर विजय के उपलक्ष्य में इस कैलेंडर की शुरूआत की थीl 

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार साल में बारहों महीने के नाम इस प्रकार हैं- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन हैl इस लेख में हम भारत के विभिन्न हिस्सों में हिन्दू नववर्ष को जिन नामों से जाना जाता है, उसका विवरण दे रहे हैंl  

1. ) चैत्र नववर्ष/चैत्र प्रतिपदा/चैत्र नवरात्रि:
   मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड 
          चैत्र नवरात्रि की शुरूआत हिन्दू कैलेंडर के पहले महीने चैत्र में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता हैl ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। चैत्र नवरात्रि से ही हिन्दू नववर्ष के पंचांग की गणना प्रारंभ होती है। कुछ लोगों का मानना है कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा अवतरित हुर्इ थी और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था। यही कारण है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हिन्दू नववर्ष शुरू होता है। 

ऐसी भी मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लिया और पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके अलावा भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे रामनवमी के नाम से मनाया जाता हैlचैत्र नवरात्रि में कलश स्थापित कर नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाया जाता है और नियमित रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। 
  नवरात्रि का ज्योतिषीय महत्व :
ज्योतिषशास्त्र में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्रि से ही सूर्य की राशि में परिवर्तन होता है। भगवान सूर्य 12 राशियों में अपना भ्रमण पूरा करने के बाद फिर से अगले चक्र को पूरा करने के लिए पहली राशि अर्थात मेष राशि में प्रवेश करते हैंl 

2.) उगादी : आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक:
  उगादी नाम संस्कृत शब्द युग (आयु) और आदि (शुरुआत) से लिया गया है, जिसका अर्थ है “एक नई उम्र की शुरुआत”l इस त्योहार को चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता हैl इस दिन लोग अपने घरों और आस पास की अच्छे से सफाई करते हैं और अपने घरों के प्रवेश द्वार में आम के पत्ते लगाते हैं। लोग इस दिन अपने लिए और अपने परिवार जनों के लिए सुन्दर कपडे खरीदते हैं। इस दिन सभी लोग सवेरे से उठते हैं और तिल के तेल को अपने सिर और शरीर में लगाते हैं और उसके बाद वे मंदिर जाते हैं और प्रार्थना करते हैं। लोग इस दिन भगवान् को सुन्दर सुगन्धित चमेली के फूलों का हार चड़ाते हैं और उनकी पूजा आराधना करते हैं।
इस त्योहार के अवसर पर लोग बहुत ही स्वादिष्ट खाना और मिठाइयाँ बनाते हैं और अपने परिवार और आस पास के लोगों को बाँटते भी हैं। उगादी त्योहार पर बनने वाले व्यंजनों में “उगादी पचड़ी” और “पुलिओगुरे” प्रमुख हैंl तेलंगाना में इस त्योहार को 3 दिन तक लगातार मनाया जाता है।
कई जगहों में इस दिन भक्ति संगीत और कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है और कई पारंपरिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक झांकियों का प्रदर्शन किया जाता हैl

3.) गुड़ी पड़वा : महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र
       गुड़ी पड़वा के अवसर पर महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र के लोग इस दिन गुड़ी का पूजन कर इसे घर के द्वार पर लगाते हैं और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार सजाते हैंl ऐसा माना जाता है कि यह बंदनवार घर में सुख, समृद्धि और खुशि‍यां लाता है। 
गुड़ी पड़वा के दिन खास तौर से हिन्दू परिवारों में “पूरनपोली” नामक मीठा व्यंजन बनाने की परंपरा है, जिसे घी और शक्कर के साथ खाया जाता है। वहीं मराठी परिवारों में इस दिन खास तौर से “श्रीखंड” बनाया जाता है, और अन्य व्यंजनों व पूरी के साथ के साथ परोसा जाता है।
योग विचारधारा: प्राचीन भारतीय साहित्य दर्शन
गुड़ी पड़वा के दिन नीम की पत्ति यां खाने का भी विधान है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नीम की कोपलें खाकर गुड़ खाया जाता है। इसे कड़वाहट को मिठास में बदलने का प्रतीक माना जाता है।  
हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से ही होता है। कहा जाता है के महान गणितज्ञ- भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की गई थी।  
गुड़ी पड़वा शब्द में गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका और पड़वा प्रतिपदा को कहा जाता है। गुड़ी पड़वा को लेकर यह मान्यता है, कि इस दिन भगवान राम ने दक्षिण के लोगों को बाली के अत्याचार और शासन से मुक्त किया था, जिसकी खुशी के रूप में हर घर में गुड़ी अर्थात विजय पताका फहराई गई थीl आज भी यह परंपरा महाराष्ट्र और कुछ अन्य स्थानों पर प्रचलित है, जहां हर घर में गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी फहराई जाती है।  
मराठी भाषियों की एक मान्यता यह भी है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस दिन ही हिन्दू पदशाही का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिन्दवी साम्राज्य की नींव रखी थीl


4.) सजीबू नोंग्मा पनबा या चैरोबा : मणिपुर
    सजीबू नोंग्मा पनबा, जिसे “मीती चैरोबा” या “सजीबू चैरोबा” भी कहते हैं, मणिपुर के संजाम धर्म का पालन करने वाले लोगों का प्रसिद्ध त्योहार हैl  सजीबू नोंग्मा पनबा मणिपुरी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ “सजीबू महीने का पहला दिन” हैl इस दिन सभी मणिपुरी लोग सुबह में उठ कर पूजा करते हैं। इस दिन महिलाएं नए चावल, सब्जियों और फूल और फलों से खाना पकाती हैं और उनको लेकर लाइनिंगथोउ सनामही और लेइमरेल इमा सिडबी को भोग चढाते हैं।

5. नवरेह : जम्मू-कश्मीर 
      नवरेह शब्द संस्कृत शब्द "नववर्ष" से बना है। कश्मीर में नवरेह नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाता है। नवरेह उत्साह व रंगों का त्योहार है। कश्मीरी पंडित इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस त्योहार से एक दिन पूर्व कश्मीरी पंडित पवित्र विचर नाग के झरने की यात्रा करते हैं तथा इसमें पवित्र स्नानकर मलिनता का त्याग करते हैं। इसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण किया जाता है। प्रसाद को 'व्ये' कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियाँ डाली जाती हैं तथा घर में पिसे चावल की पिट्ठी भी सम्मिलित की जाती है। कश्मीर में नवरेह की सुबह लोग सर्वप्रथम चावल से भरे पात्र को देखते हैं। यह धन, उर्वरता तथा समृद्धशाली भविष्य का प्रतीक है।
पंडित परिवार का कुलगुरू, नया कश्मीरी पंचांग, जिसे “नेची-पत्री” कहते हैं, अपने यजमानों को प्रदान करते हैं। इसके अलावा एक अलंकृत पत्रावली, जिसे “क्रीच प्रच” कहते हैं और जिसमें देवी शारिका की मूर्ति बनी होती है, भी प्रदान की जाती है।

6.) थापना : राजस्थान, मारवाड़ क्षेत्र
   थापना त्योहार राजस्थानी कैलेंडर "मारवाड़ी मिति" के अनुसार चैत्र शुद्ध की पहली तिथि को मनाया जाता हैl

7. ) चेती चाँद : सिंधी क्षेत्र
  सिन्धी लोग इस दिन को “चेती चाँद” के नाम से मनाते हैं। इस दिन को वे जल के देवता वरूण के जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं। इसके अलावा इस दिन भगवान जुलेलाल और बेह्रानो साहिब की भी पूजा करते हैं।


8.) बैसाखी, पंजाबी नव वर्ष :
    बैसाखी , पारंपरिक रूप से एक फसल का त्यौहार है, जिसे हर साल 13 या 14 अप्रैल को पंजाबी नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। नए साल में रिंग करने के लिए, पंजाब के लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करके ढोल ढोल की थाप पर तालियां बजाकर खुशी का जश्न मनाते हैं। ऐतिहासिक रूप से, बैसाखी 17 वीं शताब्दी के अंत में गुरु गोविंद सिंह द्वारा सिख खालसा योद्धाओं की स्थापना का प्रतीक है।

9.) बंगाल में पोइला बैशाख : 

 बंगाली नव वर्ष का पहला दिन हर साल 13 से 15 अप्रैल के बीच पड़ता है। विशेष दिन को पोइला बैशाख कहा जाता है । यह पश्चिम बंगाल के पूर्वी राज्य में एक राज्य अवकाश और बांग्लादेश में एक राष्ट्रीय अवकाश है।
  नबा बरसा नामक "नया साल" , लोगों के लिए अपने घरों को साफ करने और सजाने और धन और समृद्धि की देवी , देवी लक्ष्मी का आह्वान करने का समय है। सभी नए उद्यम इस शुभ दिन से शुरू होते हैं, क्योंकि व्यवसायी अपने नए उत्पादकों को हला खता के साथ खोलते हैं , एक ऐसा समारोह जिसमें भगवान गणेश को बुलाया जाता है और ग्राहकों को उनके सभी पुराने बकाया के निपटान के लिए आमंत्रित किया जाता है और मुफ्त जलपान की पेशकश की जाती है। बंगाल के लोग दावत और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए दिन बिताते हैं।


10.) असम में बोहाग बिहू या रोंगाली बुहू : 
   असम का पूर्वोत्तर राज्य बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू के वसंत त्योहार के साथ नए साल की शुरुआत करता है, जो एक नए कृषि चक्र की शुरुआत का प्रतीक है। मेलों का आयोजन किया जाता है जिसमें लोग मज़ेदार खेलों में भाग लेते हैं। समारोह दिनों के लिए चलते हैं, युवा लोगों को अपनी पसंद का साथी खोजने के लिए अच्छा समय प्रदान करते हैं। पारंपरिक पोशाक में युवा बिहू गीत ( नए साल के गीत) गाते हैं और पारंपरिक मूकोली बिहू नृत्य करते हैं। इस अवसर का उत्सव भोजन पीठा या चावल केक है। लोग दूसरों के घरों में जाते हैं, नए साल में एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और उपहार और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं।


11.) केरल में विशु : 

विशु केरल के मेडम के पहले महीने में पहला दिन है, जो दक्षिणी भारत में एक सुरम्य तटीय राज्य है। इस राज्य के लोग, मलयाली, दिन की शुरुआत सुबह मंदिर में जाकर करते हैं और विशुकानी नामक एक शुभ दृष्टि की तलाश करते हैं ।
      दिन विस्तृत पारंपरिक अनुष्ठानों से भरा हुआ है, जिन्हें आमतौर पर सिक्कों के रूप में , विस्कुइनेटम नामक टोकन के साथ वितरित किया जाता है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, कोड़ी विशालम, और पटाखे फोड़कर दिन मनाते हैं और परिवार और दोस्तों के साथ साध्या नामक एक विस्तृत दोपहर के भोजन में कई प्रकार के व्यंजनों का आनंद लेते हैं। दोपहर और शाम एक विशुलेवा या त्योहार पर बिताए जाते हैं।

12.) वर्षा पीरप्पु या पुथंडु वाज़ुथुका, तमिल नव वर्ष
   

 अप्रैल के मध्य में दुनिया भर में तमिल भाषी लोग वर्षा पीरप्पु या पुथंडु वाज़थुकल तमिल नव वर्ष मनाते हैं। यह चिथिरई का पहला दिन है, जो पारंपरिक तमिल कैलेंडर में पहला महीना है। दिन में कान्नी को देखने या सोने, चांदी, गहने, नए कपड़े, नए कैलेंडर, दर्पण, चावल, नारियल, फल, सब्जियां, सुपारी, और अन्य ताजे कृषि उत्पादों के रूप में प्रोविटैशिंग देखने से होता है। यह अनुष्ठान सौभाग्य में प्रवेश करने के लिए माना जाता है।
   सुबह में एक कर्मकांड स्नान और पंचांग पूजा नामक पंचांग पूजा शामिल है । तमिल "पंचांगम", जो नववर्ष की भविष्यवाणियों पर एक किताब है, का चंदन और हल्दी के पेस्ट, फूल और सिंदूर पाउडर से अभिषेक किया जाता है और देवता के सामने रखा जाता है। बाद में, इसे घर पर या मंदिर में पढ़ा या सुना जाता है।

     पुथांडु की पूर्व संध्या पर, हर घर को अच्छी तरह से साफ किया जाता है और स्वाद से सजाया जाता है। दरवाजे एक साथ लगे आम के पत्तों से सुसज्जित हैं और विल्क्कू कोल्लम सजावटी पैटर्न फर्श से सजे हैं। नए कपड़े दान करते हुए , परिवार के सदस्य इकट्ठा होते हैं और एक पारंपरिक दीपक, कुथु विल्क्कु , और नीरिकुदुम , पानी के साथ एक छोटी गर्दन वाला पीतल का कटोरा भरते हैं, और प्रार्थना करते समय आम के पत्तों से उसे सजाते हैं । लोग दिन की समाप्ति पर पड़ोसी मंदिरों में जाकर देवता को प्रार्थना करते हैं। पारंपरिक पुथंडू भोजन में पचड़ी, गुड़, मिर्च, नमक, नीम की पत्ती या फूल और इमली का मिश्रण होता है, साथ ही हरे केले और कटहल का काढ़ा के साथ-साथ कई प्रकार के मीठे पयाराम (डेसर्ट) भी होते हैं।



* नवसंवत्सर क्या है, पढ़ें महत्व एवं पूजन विधि :

नवसंवत्सर का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है, यह अत्यंत पवित्र तिथि है। इसी तिथि से पितामह ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण प्रारंभ किया था। वस्तुतः नवसंवत्सर भारतीय काल गणना का आधार पर्व है जिससे पता चलता है कि भारत का गणित एवं नक्षत्र विज्ञान कितना समृद्ध है।


'चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि। शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति।'

इस तिथि को रेवती नक्षत्र में, विष्कुंभ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव भी माना जाता है-


'कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा, रेवत्यां योगविष्कुम्भे दिवा द्वादशनाडिकाः। मत्स्यरूपकुमार्या च अवतीर्णों हरिः स्वयम्‌।'


युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारंभ भी इस तिथि को हुआ था। यह तिथि ऐतिहासिक महत्व की भी है, इसी दिन सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकां पर विजय प्राप्त की थी और उसे चिरस्थायी बनाने के लिए विक्रम संवत का प्रारंभ किया था।

हिन्दू नववर्ष पर पूजन कैसे करें :-

* इस दिन प्रातः नित्य कर्म कर तेल का उबटन लगाकर स्नान आदि से शुद्ध एवं पवित्र होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर देश काल के उच्चारण के साथ सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

* ऐसा संकल्प कर नई बनी हुई चौरस चौकी या बालू की वेदी पर स्वच्छ श्वेतवस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल बनाकर उस पर ब्रह्माजी की सुवर्णमूर्ति स्थापित करें।

* गणेशाम्बिका पूजन के पश्चात्‌ 'ॐ ब्रह्मणे नमः' मंत्र से ब्रह्माजी का आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें।

* पूजन के अनंतर विघ्नों के नाश और वर्ष के कल्याण कारक तथा शुभ होने के लिए ब्रह्माजी से विनम्र प्रार्थना की जाती है-

'भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु में। संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः।'

* पूजन के पश्चात विविध प्रकार के उत्तम और सात्विक पदार्थों से ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए।

* इस दिन पंचांग श्रवण किया जाता है।

* नवीन पंचांग से उस वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष आदि का तथा वर्ष का फल श्रवण करना चाहिए।

* अपने सामर्थ्य के अनुसार पंचांग दान करना चाहिए तथा प्याऊ की स्थापना करनी चाहिए।

* इस दिन नया वस्त्र धारण करना चाहिए तथा घर को ध्वज, पताका, बंधनवार आदि से सजाना चाहिए।

* गुड़ी पड़वा दिन नीम के कोमल पत्तों, पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिस्री और अजवाइन डालकर खाना चाहिए। इससे रुधिर विकार नहीं होता और आयोग्य की प्राप्ति होती है।

* इस दिन नवरात्रि के लिए घटस्थापना और तिलक व्रत भी किया जाता है। इस व्रत में यथासंभव नदी, सरोवर अथवा घर पर स्नान करके संवत्सर की मूर्ति बनाकर उसका 'चैत्राय नमः', 'वसंताय नमः' आदि नाम मंत्रों से पूजन करना चाहिए।

इसके बाद पूजन-अर्चन करना चाहिए। विद्वानों तथा कलश स्थापना कर शक्ति आराधना का क्रम प्रारंभ करके नवमी को व्रत का पारायण कर शुभ कामनाओं का फल प्राप्ति हेतु मां दुर्गा से प्रार्थना करनी चाहिए।
भारत माता की जय 💞🚩🕉️🇮🇳💐🙏



Santoshkumar B Pandey at 10.50PM 

Comments

  1. बहुत सुंदर जानकारी

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  2. Vishnumaya Temple Bangalore
    Great Article! Thanks for sharing this information. https://www.vishnumayadirect.com/

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