हिंदू धर्म और सेक्स !

" हिंदू धर्म और सेक्स "
   

हिंदू धर्म सेक्स के संबंध में क्या कहता है ?
 यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। सोचिए यदि हिंदू धर्म सेक्स का विरोधी होता तो क्या हिंदू धर्म के मूल सिद्धांत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में `काम` को शामिल किया जाता? सोचिए क्या खजुराहो के मंदिर बनते? क्या अजंता-एलोरा की गुफाओं का निर्माण होता? नहीं न। वात्स्यायन के कामसूत्र का आधार भी प्राचीन कामशास्त्र और तंत्रसूत्र है। इस शास्त्र अनुसार संभोग भी मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन हो सकता है, लेकिन यह बात सिर्फ उन लोगों पर लागू होती है जो सच में ही मुमुक्षु हैं।

चार पुरुषार्थ : 
भारतीय परम्परा में जीवन का ध्येय है पुरुषार्थ। पुरुषार्थ चार प्रकार का माना गया है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चार को दो भागों में विभक्त किया है, पहला- धर्म और अर्थ। दूसरा- काम और मोक्ष। काम का अर्थ है सांसारिक सुख और मोक्ष का अर्थ है सांसारिक सुख-दुःख और बंधनों से मुक्ति। इन दो पुरुषार्थ काम और मोक्ष के साधन हैं अर्थ और धर्म। अर्थ से काम और धर्म से मोक्ष साधा जाता है।

पुरुषार्थ संतुलन :
 हिंदू धर्म मानता है कि चारों पुरुषार्थ जीवन जीने की कला के क्रम हैं। यदि आप सिर्फ किसी एक पुरुषार्थ पर ही बल देने लगते हैं तो जीवन विकृत हो जाता है। मसलन की यदि सिर्फ धर्म ही साधने में लगे रहे तो संसार तो छूट ही जाएगा और श्रेष्ठ संन्यासी भी नहीं हो सकते क्योंकि हमने सुना है कि ज्यादातर साधुओं को सुंदर स्त्रियों के सपने सताते हैं। इसीलिए हिंदुत्व को एक श्रेष्ठ व संतुलित जीवन जीने की पद्धत्ति कहा गया है। यदि कोई काम पर ही ‍अति ध्यान देने लगता है तो समाज में उसकी प्रतिष्ठा गिरती जाएगी और अतिकामुकता के चलते वह शारीरिक क्षमता खो बैठेगा। सिर्फ अर्थ पर ही ध्यान दिया तो व्यक्ति संबंध और रिश्ते खो बैठता है। इससे उसका सामाजिक और पारिवारिक जीवन खत्म हो जाता है। रुपए को महत्व देने वाले कितनों के ही रिश्ते सिर्फ नाममात्र के होते हैं। ऐसे में चारों पुरुषार्थ का संतुलन ही जीवन को जीवन बनाता है।

शिव और पार्वती का मिलन :
 कहते हैं कि भगवान शिव के प्रिय शिष्य नन्दी ने सर्वप्रथम कामशास्त्र की रचना की जिसमें एक हजार अध्यायों का समावेश था। अब सोचिए सिर्फ सेक्स पर एक हजार अध्याय! महर्षि वात्स्यायन ने अपनी विश्व विख्यात रचना ‘कामसूत्र’ में इसी शास्त्र का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया है। इससे पूर्व श्वेतकेतु और महर्षि ब्राभव्य ने इस शास्त्र को समझकर इसको अपने तरीके से लिखा था, लेकिन उनके शास्त्र कहीं खो गए।

हिंदू जीवन दर्शन में काम की भूमिका एवं उसके महत्व को सहज भाव से स्वीकारा गया है। उसे न तो गोपनीय रखा गया और न ही वर्जित करार दिया गया। इतनी महत्वपूर्ण बात जिससे सृष्टि जन्मती और मर जाती है इससे कैसे बचा जा सकता है, इसीलिए धर्म और अर्थ के बाद काम और मोक्ष का महत्व है।

धर्म का ज्ञान हमें जीवन में सही और गलत की शिक्षा देता है। ब्रह्मचर्य आश्रम में सभी तरह के ज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। उसी के बाद अर्थोपार्जन के साथ ही काम कला में पूर्णता प्राप्त करते हुए मोक्ष के द्वार खुलते हैं। जीवन को चार भाग में बाँटकर इस चार कदम की संपूर्ण व्यवस्था निर्मित की गई थी। 

काम शास्त्र : 
काम संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है आनंद की इच्छा या आकांक्षा। काम को सीधे तौर पर संभोग या सेक्स कहते हैं। हिंदुओं के प्रेम के देवता कामदेव के नाम से इस शब्द की उत्पत्ति मानी गई है। भारतीय कामशास्त्र काम अर्थात संभोग और प्रेम करने की कला का शास्त्र है। 

कहते हैं कि नंदी ने भगवान शंकर और पार्वती के पवित्र प्रेम के संवादों को सुनकर कामशास्त्र लिखा। नंदी नाम का बैल भगवान शंकर का वाहन माना जाता है। क्या कोई बैल एक हजार अध्यायों का शास्त्र लिख सकता है? हमारे जो तंत्र के जानकार हैं उनका मानना है कि सिद्ध आत्मा के लिए शरीर के आकार का महत्व नहीं रह जाता। 

कामशास्त्र के अधिक विस्तृत होने के कारण आचार्य श्वेतकेतु ने इसको संक्षिप्त रूप लिखा, लेकिन वह ग्रंथ भी काफी बड़ा था अतः महर्षि ब्राभव्य ने ग्रन्थ का पुनः संक्षिप्तिकरण कर उसे एक सौ पचास अध्यायों में सीमित एवं व्यवस्थित कर दिया। 

कामसूत्र : 
महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना की। इसे विश्व का प्रथम यौन शिक्षा ग्रंथ माना जाता है। कामसूत्र के रचनाकार का मानना है कि दाम्पत्य उल्लास एवं संतृप्ति के लिए यौन-क्रीड़ा आवश्यक है। वास्तव में सेक्स ही दाम्पत्य सुख-शांति की आधारशिला है। काम के सम्मोहन के कारण ही स्त्री-पुरुष विवाह सूत्र में बँधने का तय करते हैं। अतः विवाहित जीवन में काम के आनन्द की निरन्तर अनुभूति होते रहना ही कामसूत्र का उद्देश्य है। जानकार लोग यह सलाह देते हैं कि विवाह पूर्व कामशास्त्र और कामसूत्र को नि:संकोच पढ़ना चाहिए। 

संभोग से समाधि :
 ऐसा माना जाता है कि जब संभोग की चरम अवस्था होती है उस वक्त विचार खो जाते हैं। इस अमनी दशा में जो आनंद की अनुभूति होती है वह समाधि के चरम आनंद की एक झलक मात्र है। संभोग के अंतिम क्षण में होशपूर्ण रहने से ही पता चलता है कि ध्यान क्या है। निर्विचार हो जाना ही समाधि की ओर रखा गया पहला कदम है। 

आनंद क्या है? 
ओशो कहते हैं कि सुख तो एक उत्तेजना है, और दुःख भी। प्रीतिकर उत्तेजना को सुख और अप्रीतिकर को हम दुःख कहते हैं। आनंद दोनों से भिन्न है। वह उत्तेजना की नहीं, शांति की अवस्था है। सुख को जो चाहता है, वह निरंतर दुःख में पड़ता है। क्योंकि, एक उत्तेजना के बाद दूसरी विरोधी उत्तेजना वैसे ही अपरिहार्य है, जैसे कि पहाड़ों के साथ घाटियाँ होती हैं, और दिनों के साथ रात्रियाँ। किंतु, जो सुख और दुःख दोनों को छोड़ने के लिए तत्पर हो जाता है, वह उस आनंद को उपलब्ध होता है, जो कि शाश्वत है। 

अत: संभोग की चर्चा से कतराना या उस पर लिखी गई श्रेष्ठ किताबों को न पढ़ना अर्थात एक विषय में अशिक्षित रह जाना है। कामशास्त्र या कामसूत्र इसलिए लिखा गया था कि लोगों में सेक्स के प्रति फैली भ्रांतियाँ दूर हों और वे इस शक्ति का अपने जीवन को सत्यम, शिवम और सुंदरम बनाने में अच्छे से उपयोग कर सकें।

Santoshkumar B Pandey at 10.50 Am 

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