क्यों की वह मन की सीमा के पार है,तभी तो वह संत है !

क्यों की वह मन की सीमा के पार है,तभी तो वह संत है ! 

संत का अर्थ है परम संतुलन और संतुलित सदा अतिक्रमण कर जाता है. संत को पहचानने की दृष्टि तुममे अभी नही आ सकती, यदि यहि दृष्टि आ जाए तो तुम्ही संत हो जाओ. फिर तुम्हे किसी गुरु की क्या आवश्यकता? संत तुम्हारी धारणाओं में नही समाएगा. वह छूट छूट जाएगा. तभी तो वह मन की सीमा से तुम्हे मुक्त करने में समर्थ है. क्यूँ की खुद मुक्त है.

संत भीख मांगेगा- बुद्ध.
संत सम्राट होगा- जनक, राम, कृष्ण.
संत अपंग होगा- अष्टावक्र.
संत नग्न होगा- महावीर.
संत स्त्री नग्न होगी- लल्ला.
संत रुढ़िवादी होगा- रामानंद.
संत जातिवादी होगा- चैतन्य
संत नर्तक होगा- श्री श्री
संत परम भोग को प्रश्रय देगा- एपिक्युरस.
संत सिगार पिएगा- गुर्ज़िएफ़्फ़.
संत मांसाहार करेगा- राम कृष्ण.
संत पत्नी को छोड़ देगा- राम तीर्थ
संत वियोगी होगा- राम
संत मायावी होगा- कृष्ण
संत है अस्तित्व का पार का रूप. संत है अस्तित्व का अद्वितीय पुष्प. और अद्वितीयता सदा रहस्य है.
कभी संत का मूल्यांकन मत करना.
संत वही है जिससे तुम्हे अपना पता मिले.
जिससे अंततः प्रेम हो जाए.
यह ह्रदय की घटना है. यह रहस्य से जुड़ना है. यह रहस्य से प्रेम है.
और प्रेम सदा बुद्धि व तर्क के पार है.

किसी संत को उसके वेशभूषा से नहीं टटोलना चाहिए , संतो के सिलसिले में शिव की अघोर रूप में साधना का बड़ा महत्व है !

Santoshkumar B Pandey at 11.40 Am. 

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